सोनाखान के आगी – लक्ष्मण मस्तुरिया

धरम धाम भारत भुइयां के
मंझ म हे छत्तीसगढ राज
जिहां के माटी सोनहा धनहा
लोहा कोइला उगलै खान

जिहां सिहावा के माथा ले
निकले महानदी के धार
पावन पैरी सिवनाथ तीर
सहर पहर के मंगल हार

जोंक नदी इन्द्रावती तक ले
गढ़ छत्तीसगढ़ छाती कस
उत्ती बर सरगुजा कटाकट
दक्खिन बस्तर बागी कस

पूरब ले सारंगढ गरजै
राजनांदगांव पच्छिम ले
एक न एक दिन रार मचाहीं
बेटा मोर सोन पंखिन के

जिहां भिलाई कोरबा ठाढे
पथरा सिंरमिट भरे खदान
तांबा पीतल टीन कांछ के
इही माटी म थाथी खान

जिहां के मनखे फोरै पथरा
काटैं लोहा कोइला खान
माटी कोडे़ बधियां बांधे
जांगर टोर उगावैं धान

शिव बसे जिहां मनखे मन मा
अमरित बांट करैं बिसपान
मया मे माते मूड कटावैं
दया म जीव तक दे दै दान

बालमिकि के इहि कुटिया म
कतको पढ़ पढ़ पाइन ज्ञान
धरम राज अउ हरिस्चंद के
इही माटी म जीव परान



सरन परे भिखमंगा आइन
छिन भर म होगिन धनवान
तपसी आइन इहि माटी म
मया करिन बनगिन भगवान

इहि माटी के गुन आगर हे
जेखर गली गली परमान
सतवादी हें लांघन भूखन
मंजा करत बइठे बइमान

जेहि पतरी म खाइन बइरी
उहि पतरी म छेद करिन
जेहि म जीव लुकाइन
उहि घर मुडि़यामेंट करिन

राजा अउ परजा के मंझ म
बड चतुरा बयपारी यार
नफा कमावै मजा उडावै
काम करै बइमानी सार

भाई-भाई फूट डार दिन
मनखे मनखे ल देइन लडाय
करजा बांट करेजा काटिन
धरती धरम सबो सर जाय

किस्सा बडे़-बडे़ कतको हे
इहि भुंइया के सोसन के
जयचंद अउ मिरजाफर जतका
मुखिया होथे लोक्खन के

000

परधीन रहे जे दिन भारत भुंइया
कलपि-कलपि रोई गोहारै रे
पुत सपुत कोनो जागैं का रे
इही विपति ले जउन उबारे रे
घर घर अंखियां ले बरसे पानी रे

सुनिस अर्राइस गर्रा धुर्रा उड्डिस
उठिस बंडोरा छुइ अगास रे
डबकै लहू रे लाली बागी भइगे
चमकै खडग बारों मास रे
उही दिन ले पानी म लगगिस आगी रे

जोर जुलुम के उही संमे म
सभिमानी मन करिन विचार
परन ठान के कफन बांध के
म्यान ले लिन तलवार निकार

फूंकिन संख सन सन्तावन म
कापिन बइरी गे घबराय
साह बहादुर लक्ष्मीबाई अउ
नाना टोपे सुरेन्दर साय

मंदसौर ले खान फिरोजा
ग्वालियर के बैजा रानी
सहीद कुंवरसिंग आरावाले
मानपुर के मर्दन बागी

राहतगढ़ ले आदिल मोहम्मद
अमझेर ले बख्तावर सिंग
सादत खां इन्दौर ले गरजिस
देस धरम बर जीव दे दिन

उही समें म छत्तीसगढ़ के
गरजिस वीर नारायेन सिंग
रामराय के बघवा बेटा
सोनाखान धरती के धीर

सन छप्पन के परे दुकाल
कंद मूल घलो मिलै न पान
जंगल छोड़ पसु पंछी परागै
भूख म परजा तजै परान



बयपारी मन महल म भर भर
अन्न धन जोर भरिन भरमार
बडे भयंकर सुक्खा परगे
चहुं दिसी मचगे हाहाकार

निरमोही बयपारी आगू
बीर नारायेन जोरिस हाथ
परजा भूख मरत हे ठाढे
दे दौ करजा अन्न धन बांट

बडे मुनाफा के लालच म
बयपारी बइंठिन कठुवाय
कोनो मरै जियै का हमला
नइ कुछ देना बात सुनाय

वीर नारायेन संग सरदारन
कुर्रु पाठ म होमिन जीव
साहूकार के कोठी के अन्न
आगी धरे म बनगिस घीव

अन्यायी के आगू आके
अन्न-धन लूट देइस बंटवाय
बनबासी जयकार करिन सब
जय-जय वीर नारायेन राय

अंगरेजिया संग मिल बइपारी
नारायेन ल दिन बेड़वाय
चोरी डाका दफा लगाके
रयपुर जेल म दिन बंधवाय

जइसे लगन लगे जेखर मन
तइसे समे बनावै राम
बंदी मन संग मिल जुल के
सुमता बांध निकारिन काम

करतब कारन जीव होम के
जो होवै कुछ करना हे
आजि मरना कालि मरना
मरना ले का डरना हे

मंझला नाम के एक बंदी संग
बीर नारायेन बदिस मितान
धरम के रस्दा एक दूनों के
कद काठी के रहे मिलान



एक दिन सलाह होइन दूनों झन
निकल चली टोर जेल दुवार
या फेर मर जाई दूनों झन
एक दूसर ला मार कटार

फेर सुरता आगे उही प्रन के
फरकिस भुजा बरन ललियांय
आंखी जले लगिस लक लक लक
कटरै दांत, बदन अंटियाय

नहीं नहीं संगी ये मरना तो
कायर अउ मन हारे के
मोर जिनगी मोर परजा खातिर
जे मोला मुखिया माने हे

जमींदार मैं सोनाखान के
सोना उपजै मोर माटी म
जिहां के भुईंधर भूख मरत हे
आग बरै मोर छाती म

आज रात के सोवा परती
डेढ़ बजे बाजत घंटा
उही समे बस जागत रहिबे
कुर्रु पाठ टोरय फंदा

काल बरोबर करिया रात म
दिखै न कुछू हाथ पसार
झपट के बन्दूक द्वारपाल के
झटक के दिस दुइहत्था मार

हाय कहत म प्रान निकलगे
बर्दी वोखरे लिन निकार
झटपट पहिरिस मंझला ठाकुर
लास ल नाली म दिन डार

संग दिहिन बीर नारायेन के
देसी सिपइहा भाई दुईचार
सेंध लगाके जेल घेरा ले
विदा करिन कर जोर जोहार

उही समय म खटका परगे
जाग उठिन सगरो दरबान
भोंपू बाजिस पकडो़-पकडो़
छूटिस बंदुक गोला बान



वीर मंझला अउ देसी सिपहियन
मारिन जूझिन गंवा दिन प्रान
घडी़ आध घडी़ गदर मचाके
होगिन बीर बागी बलिदान

आगी लगगे सोनाखान म
दहकिस सोना अंगरा कस
जेल टोर के बागी भागगे
इलियट भइगे अंधरा कस

इलियट अंगरेज रहें कलेक्टर
स्मिथ जनरल सेना के
दया धरम के नाम रहे ना
मन मा उन जीव लेवा के

स्मिथ सेना लेके घेरिस
सोनाखान जमींदारी ल
सिंहगढ़ भईगे सिंहखान फेर
सोनाखान तप आगी म

कुर्रुपाठ छोड़ सरदारन संग
सोनाखान के जंगल म
डेरा डारिन नारायेन सिंग
साजा कउहा के बंजर म

देवरी के जमींदार दोगला
बहनोई बीर नारायेन के
दगा दिहिस बाढे़ बिपत म
काम करिस कुकटायन के

अंगरेजिया स्मिथ बड़ कपटी
उहि गद्दार ल लिस मिलाय
बेलासपुर भटगांव, बिलईगढ़
घलो के सेना संग लेवाय

टूट परिस गढ़ सोनाखान म
अंगरेजियन के गोला बान
अन्न-धन लूटिन कतल करिन अस
एक्को घर ना छोडि़न प्रान

घोडा करेलिया म चढे नारायेन
गली-गली किंजरै अलख जगाय
भूख म तो जीव तड़पत जाही
रन जूझ मरौ सरग मिल जाय

अनियायी के अनियाय सहना
सबले बडे़ होवै अनियाय
काट के पापी ल खुद कट जावै
धरम करम गीता गुन गाय

बिना सुराजी के जिनगानी
मुरदा हे तन मरे परान
बिना मान सभिमान के मनखे
गाय गरु अड कुकुर समान

भूख म कोउ भुंइधारी मरही
देस राज के पुन्न नसाय
कोढी़ होइ के राजा मरही
दुस्मन चढि़ के राज हजाय



पाये बर अधिकार परन धर
एक बेर तो निकल परौ
टंगिया, रापा, गैती धर के
एक बेर तो बिफर परौ

धरम धाम म राज करत हें
कायर कुकुर धन लोभी
मुरदा कस जिनगी जिथौ
धिक्कार तुंहर मानुस जोनि

तोरे जुग हे तोरे धरती
तोरे बर ए राज घलो
जिनगी ला जी बांध बरोबर
दुस्मन मन ल मार धरो

एक गिरौ दस मार मरौ तुम
एक जुझौ सौ जुझाय
कफन बांध रन कूद परौ तुम
भागे बैरी प्रान बचाय

भुंई महतारी के रक्षा बर
असली मनखे प्रान गंवाय
कायर फंसथे सुख सुविधा बर
नकली-चकली साज सजाय

अन्यायी कट कचरा होथे
न्यायी खपके सोन समान
धरमी जागै अलख जगावै
पापी के मुंह कसे लगाम

जाग किसनहा जाग कमइया
हक बर लडौ मरौ जंग म
लाज बचाले अपन कुल के
रंग माथा मन रंग रन म

तप-तप तन-मन बज्जुरा बनथे
खप-खप देह भभूत समान
जनम-जनम के जंग जुझारू
होथे बीर सपूत महान

तप बिना तन मन तलमल तइया
प्रन बिन प्रानी पसु पछार
त्याग बिना जीव तनानना के
दया धरम बिन गरु गंवार

नरवा तीर मुड़भेट्ठा भईगे
गरजिस गोला तीर कमान
परे गोला तन धुर्रा भइगे
तीर लगे तड़पत हे प्रान



पांव लहुट गे अंगरेजियन के
स्मिथ मन म गे घबराय
बनवासी बइहागे रन म
दस मारै बीस देय गिराय

जय काली जय खप्पर वाली
जय बुढवा देव जय लखनी
ठाकुर देव गोर्रइया सउंहत
महमाया मोर कलंकनी

हरहर महादेव कहि-कहि के
सरदारन के जोस बढायं
मार-मार रे काट-काट कहि
नारायेन गरजय गुर्राय

पीठ देखा के पीछू हटथे
स्वारथ कारन जाथे घूंच
खटिया धरके कायर मरथे
रन चढि़ मरथे बागी पूत

मारिन सौ-सौ एक एक मिल के
घायल कर दिन आधा फौज
जनम भूमि अउ हक बर अपने
मरिन बहादुर बघवा मौत

चारों खूंट ले जंगल मंझ म
घिरगे बीर नारायेन फेर
सेना खपगै गोली खंग गे
घायल भइगे घायल शेर

मने मन गूनिस बीर नारायेन
अब तो लडे़ अकारथ हे
बन कांदी कस लोग कटत हें
मरना मोर सकारथ हे

आ स्मिथ अब बांध मोला
मत मार निहत्था रइयत ल
गरज के बोलिस बागी बीर
ले रोक ले सांग सिपहियन ल



कबरा घोडा करेलिया म बइठे
बेधड़क चलिस नारायेन राय
पीछू-पीछू अंगरेज स्मिथ
आजू-बाजू सेना सजाय

सरे आम चौरस्ता मंझ म
सभा भरे डंका बजवाय
सावधान नारायेन सिंग ल
तोप दाग देहैं उडवाय

दहसत भरगे जन-जन मनमा
कतको के सुन कंठ सुखाय
थर-थर कतको कांपन लागिन
कतको गिरगें चक्कर खाय

जय सुराज जय जनम भूमि के
गरजिस वीर उठाके हाथ
सुरुज देव के नमन करिस अउ
धुर्रा उठा चढा़ लिस माथ

तान के छाती खडे वीरसिंग
बेधड़क देख रहे मुसकाय
आर्डर होत भये सन्नाटा
छूटिस तोप गरज गर्राय

चंदन बनगे तन बागी के
माटी लहू मिले ललियाय
धर-धर आंसू धरती होइस
चहुं दिस अंधियारी घिर आय

अठरा सौ सन सन्तावन म
तारीख उन्नीस फागुन मास
बंदी बना बीर नारायेन के
अंगरेज बइरी ले लिन प्रान

हाय रे माटी तोरो करम ल
ठाढ़ दरक गे तोरो भाग
सोन गंवागें सोनाखान के
कायर कपटी मन के राज

मनखे संग गद्दारी करके
माफी पा जाही बईमान
माटी संग गद्दारी करही
वोला नइ बकसै भगवान

वीर बाप के पुत गोविन्दसिंग
दगाबाज बर काल समान
देवरी के महराजसाय के
एक दिन कर दिस काम तमाम

असने कतको बीर खपे हें
छत्तीसगढ के माटी म
कांध ले कांध मिलाके रेंगै
देस के सुख-दुख पाती म

कोन कथे माटी के मनखे
जागे नई हे सूते हे
जब जब जुलमी मूड उठाथे
तब तब बारुद फूटे हे



मंदिर छत म कउवां बइठे
देवता ले बडे़ बाजत हें
जागौ रे बघवा धरती के
कोलिहा मन ललकारत हें

बइपारी बेइमान बरोबर
सासन हे बिन पेंदी के
पुलूस दरोगा कुकरमी सब
जन सेवक घर भेदी हे

रस्दा-रस्दा कांटा बोदिन
आगी घर घर देइन लंगाय
परती पार दिन धनहा खेती
जंगल झाडी़ देइन कटाय

कइसे पार लगे दुविधा म
जिनगी लागै दहरा कस
मनखे के जीव कलपत हावै
पीरा बाढय पहरा कस

बीर नारायेन के सपना ह
टूरत हवै अधूरा हे
धधके छाती छत्तीसगढ़ के
दुख के बढ़ती पूरा हे

जुग जुग ले अन्याय न्याय के
चलत हवै छिन-छिन संगराम
इहि जिनगी के अरथ सुवारथ
मानुस जीव जोगी परमान

गुंगवावत हे कुहरा मन म
लइका बुढवां जवान के
छत्तीसगढ़ म सुलगत हे फेर
आगी सोनाखान के

जय माटी जय जनमभूमि के
जय हो भारत मइया के
बोलो जागौ जुरिया जावौ
रूप धरौ बीर सैया के

अब झन तुम विस्वास करौ
इन दोगला मन के झांसा के
जिनगी लेवव उबार बरोबर
लबरा मन के फांदा ले



अरे नाग तैं काट नहीं त
जी भर के फुफकार तो रे
अरे बाघ तै मार नहीं त
गरज गरज धुत्तकार तो रे

एक न एक दिन ए माटी के
पीरा रार मचाही रे
नरी कटाही बइरी मन के
नवा सुरुज फेर आही रे

‘सोनाखान के आगी’ किताब रूप म घलव ये साईट म धरनहा रखाए हे।

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